कैसे चुनें सही चाइल्ड साइकोलोजिस्ट ?

कैसे चुनें सही चाइल्ड साइकोलोजिस्ट ?

मुझे लगता हैं कि मेरे बच्चे के साथ कुछ ऐसी उलझनें हैं जिन्हें सुलझानें के लिए हमें एक विशेषज्ञ की जरुरत हैं। मुझे चाहिए कोई ऐसा जो मेरे बच्चें को इतना समझ सकें जितना मैं समझती हूँ… बल्कि शायद मुझ से भी ज्यादा ! साइकोलोजिस्ट ? पर कैसे पता कि वो मेरे बच्चे कि मुश्किलें उतने ही प्यार से दूर कर पायेगा जैसे मैं करना चाहती हूँ ? जाने अनजानें मैं कहीं अपने बच्चे के दिमाग से खिलवाड़ न कर बैठूँ ! डर लगता है।

बहुत स्वाभाविक है ये डर और ये सवाल। बच्चे के मन को सही हाथों में सौंपने से पहले आपको परखना आना चाहिए। कैसे? आइये जाने।

आपके शहर में कौन-कौन से अच्छे psychologists है इसके लिए आप  अपने बच्चे के डॉक्टर से बात कर सकते हैं, स्कूल काउंसलर से बात कर सकते हैं।

साइकोलोजिस्ट वही चुनिए जिसका कम से कम 50% अनुभव बच्चों के साथ कार्य करने का रहा हो।

क्योकिं बच्चों और बड़ों के साथ काम करने में बहुत फर्क होता हैं। पहली बात, बच्चे अपनी इच्छा या स्व-निर्णय से साइकोलोजिस्ट के पास नहीं आये होते है इसलिए उनसे सहयोग लेने में वक़्त लगता हैं और धैर्य भी ! बच्चे बहुत स्पष्ट सोच रखने वाले होते हैं, उनके सीधे-सपाट शब्दों से गहरे अर्थ निकलने के लिए एक अलग सूझबूझ की जरुरत होती हैं।

एक बार जब आप कुछ नाम तय कर लें तो आप उन्हें फ़ोन कर के अपनी बात संक्षिप्त में बताये और कुछ सवाल हैं जो आपको उन्हें पूछने चाहिए ताकि आप अपने बच्चे के लिए सबसे सही विशेषज्ञ का चुनाव कर सकें।

पांच ऐसे प्रश्न हैं जो आपको बाल मनोवैज्ञानिकों से पूछने चाहिए। यहाँ आपकी जानकारी के लिए मैं अपनी तरफ से उत्तर भी लिख रहीं हूँ।

 

प्र. इस तरह की समस्या पर आप कैसे कार्य करेंगे?

उ. – अभी मैं आपके बच्चे से मिली नहीं हूँ, इसलिए व्यक्तिगत तकनीक क्या रहेगी यह तो अभी नहीं बता सकती पर सामान्यतः मेरा उद्देश्य बच्चे को उन परिस्थितियों का सामना करने में कुशल बनाना होता हैं जहाँ अभी उन्हें मुश्किलें आ रहीं हैं (इसमें ये बातें शामिल होंगी – अपनी बात को सही तरह से कहना, परिस्थितियों को एक अलग नज़रिये से देखना, कुंठा, गुस्सा, उदासी के कारणों को समझना और उनका हल निकालना, बच्चों में आत्मविशवास बढ़ाना ताकि वे भविष्य में आने वाली परिस्थितियों का सामना बिना चिंताग्रस्त हुए कर सकें) इस प्रक्रिया में माता पिता को भी शामिल करती हूँ ताकि हम मिल कर बच्चे के लिए ऐसे प्रभावी तरीके चुन सकें जो उसको चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनायें। मेरा प्रयास रहता है की मैं आपके और आपके बच्चे के लिए व्यहवारिक और भावनात्मक दोनों पहलुओं में सहायक सिद्ध हो सकूँ।

 

प्र.  सारी प्रक्रिया में माता पिता को कितना शामिल होना होगा ?

उ.  मेरे काम करने के ढंग में माता पिता का पूरा सहयोग रहता हैं क्योकिं जहाँ मैं मनोविज्ञान की विशेषज्ञ हूँ वहीं आप अपने बच्चे और आपके परिवार के विशेषज्ञ हैं और हम एक साथ बैठ कर सही तरीकें चुन सकते हैं।

बच्चें की उम्र जितनी कम होगी, माता पिता को उतना ही सक्रिय रहना होगा क्योकिं छोटे बच्चें अधिकतर समय माता पिता के साथ बिताते हैं। 

बड़े बच्चों के साथ काम करते हुए भी माता-पिता का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। बच्चों से सारी जानकारी नहीं मिल पाती इसलिए माता पिता से मिल कर, समस्या पर उनका नजरिया और वस्तुस्थिति को जानना आवश्यक होता हैं। आवश्यकता पड़ने पर कुछ sessions माता पिता / परिजनों के साथ भी किये जा सकते हैं। 

Therapy गुप्त नहीं होनी चाहिए और माता पिता होने के नाते आपको इसका अंदाजा होना चाहिए क़ि इसमें क्या और कैसे किया जा रहा हैं। हालाँकि बच्चे का विश्वास जीतने के लिए आवश्यक हैं की मैं हर बात विस्तार से आपको न बताऊँ पर यदि कुछ महत्वपूर्ण हुआ जो आपको जानना चाहिए तो मैं बच्चे को विश्वास में ले कर आपसे उस बारे में बात करुँगी। यदि बच्चे की सुरक्षा से जुड़ी कोई बात हुई तो निश्चित रूप से मैं आपको उसके बारे में बताउंगी।

 

प्र. हम शुरुआत कैसे करेंगे ?

उ. शुरू मैं सिर्फ माता पिता से मिलना चाहूंगी। इस समय हम आपके परिवार और बच्चे के बारे में विस्तार से चर्चा कर पाएंगे जिससे मुझे समस्या की जड़ तक पहुँचने में मदद मिलेगी। बच्चे की मौजूदगी में ये सब पूछना उचित नहीं होगा, साथ ही आप भी ये तय कर पाएंगे की आप मेरे साथ सहजता से काम कर पाएंगे या नहीं। यदि हमारी इस मुलाकात के बाद आपको ऐसा लगे मैं आपके और आपके बच्चे के लिए सही व्यक्ति हूँ तो हम आगे की योजना बनाएंगे। आपका अपने साइकोलोजिस्ट के साथ सहज महसूस करना बहुत आवश्यक है तभी हम अपने उद्देश्य में सफल हो पाएंगे।

 

प्र. मुझे लगता हैं मेरा बच्चा आपके पास आने के लिए तैयार नहीं होगा। मैं उसे कैसे समझाऊँ ?

उ.  बहुत से बच्चे साइकोलोजिस्ट के पास जाने के नाम से घबराते हैं क्योकिं उन्हें पता नहीं होता की वहां क्या होगा, उन्हें लगता हैं की साइकोलोजिस्ट के पास इसलिए ले जाया जा रहा हैं क्योकिं वे बुरे बच्चे हैं। पर मैं आपको विश्वास दिला सकती हूँ की पहले session के बाद से ही बच्चे सहज हो जाते हैं। उन्हें अपनी मुश्किलों के सुलझ जाने की उम्मीद हो जाती हैं।

अगर आपका बच्चा अपनी स्कूल काउंसलर को पसंद करता हैं तो आप कह सकते हैं मैं उन जैसी ही हूँ।

छोटे बच्चों को आप कह सकते हैं की जिनसे हम मिलने जा रहे हैं वह बच्चों को खुश रहना और दोस्त बनाना सिखाती हैं। उनके पास बहुत सारे खिलौने भी हैं।

बड़े बच्चों को वो कहिये जो वो चाहते हैं : कौनसी समस्या वे सुलझाना चाहते हैं? जीवन के किस पहलु पर उन्हें दिक्कत हो रही हैं? साइकोलोजिस्ट के पास क्यों जा रहे हैं इस पर चर्चा कर लेने से therapy के सफल होने की संभावना बढ़ जाती हैं। ये ध्यान रखिये की बच्चों को “क्या चाहिए” यही उन्हें बताये। उनका चाहना आपके चाहने से अलग हो सकता हैं। हालाँकि थेरेपी का उद्देश्य आप दोनों की अपेक्षाओं का हल निकलना ही हैं।

बच्चे को समझाने के लिए आप ऐसा भी कह सकते हैं कि, “2-4 बार मिल कर देखों फिर नहीं ठीक लगे तो मत जाना”

 

प्र. Therapy का असर कितने समय में दिखने लगता हैं ?

. यह शुरू में ही तय करना मुश्किल हैं क्योकिं हर व्यक्ति और उसकी परिस्थितियां अपने आप में अलग होती हैं। ऐसी समस्याएं जो बहुत गंभीर हो, बहुत लम्बे समय से हों, बच्चे के जीवन के बहुत से पहलुओं को प्रभावित कर रहीं हों उन्हें सुलझने में वक़्त लगता हैं। शुरू का कुछ समय तो बच्चे को साइकोलोजिस्ट के साथ सहज होने में भी लगता हैं तभी ये निष्कर्ष निकल पाते हैं की कौनसे तरीके कारगर साबित होंगे। अगर इसका कोई तुरंत निकल सकने वाला हल होता तो आप उसे अब तक निकाल चुके होते 🙂

आम तौर पर 12 हफ़्तों में therapy का असर दिखने लगता हैं। हो सकता हैं इस से पहले भी हम ये कर पाए और ये भी हो सकता हैं की इस से अधिक समय लगे, ये परिस्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता हैं। बच्चो का नियमित रहना महत्वपूर्ण हैं, आम तौर पर therapy sessions साप्ताहिक होते हैं। बहुत कम ऐसा होता हैं की sessions एक साल से ज्यादा समय तक चलें।

बच्चों में लगातार बदलाव आता रहेगा ऐसा भी नहीं हैं, हो सकता हैं बच्चों में बहुत जल्दी सकारात्मक प्रभाव दिखने लगे और फिर कुछ समय के लिए एक ठहराव सा आ जाये, ये भी संभव हैं की शुरू में बहुत धीमा असर दिखे और फिर एक दम से बहुत बदलाव आ जाये। तेजी से आते बदलाव बहुत बार फिर से पुरानी स्थिति में आते दिखें- ऐसा भी होता हैं। समझिए की बच्चा एक लम्बी अवधि से किसी मानसिक स्थिति में था उसे पूरी तरह परिवर्तित होने में समय लगेगा और हमें यहाँ धैर्य, सहयोग और परिपक्वता का परिचय देना होगा। साइकोलोजिस्ट और माता पिता के बीच नियमित बातचीत होती रहना जरूरी हैं ताकि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो सकें और सबसे बड़ी बात – ये सुनिश्चित हो सकें की हम सही दिशा में जा रहे हैं।

साइकोलोजिस्ट का एक मात्र उद्देश्य आपके बच्चे की सहायता करना होता हैं। बच्चे को जिंदगी को देखने का एक सही नजरिया देना और उसमें आत्मविश्वास जगाना यही हमारा उद्देश्य होता हैं। आपकी सजगता और सहयोग इस उद्देश्य को प्राप्त करने में बहुत सहायक साबित होता हैं या यूँ कहिये की आपके बिना यह संभव ही नहीं हैं क्योकि आपके बच्चे के जीवन में आपकी जगह कोई और ले ही नहीं सकता। साइकोलोजिस्ट आपको एक दिशा देते हैं और थोड़ी सी सूझबूझ, बाकि का काम आपका निःस्वार्थ प्रेम कर देता हैं  🙂