सावधान ! अभिमन्यु सुन रहा हैं…।

सावधान ! अभिमन्यु सुन रहा हैं…।

“अच्छी अच्छी किताबें पढ़ा करों, खुश रहा करों, तनाव मत लिया करो… बच्चे पर असर होता हैं।” ये कुछ ऐसे वाक्य हैं जो हर भावी माँ को सुनने को मिलते हैं। बड़े बुजुर्ग हो या डॉक्टर्स इस बात पर सर्व-सम्मति हैं की सकारात्मक विचार मन और शरीर को स्वस्थ रखते हैं साथ ही गर्भ में पल रहे शिशु को भी स्वस्थ रखते हैं।

माँ के द्वारा किया जाने वाला भोजन तो शिशु के शरीर में जाता हैं पर माँ के विचार, वे भला कैसे जा सकते हैं शिशु तक ? क्या वह सब सुनता हैं और अगर सुनता भी हो तो क्या समझ सकता हैं वे बातें ??

              गर्भस्थ शिशु कैसे सीख सकता हैं इस विषय पर जापान के एक बाल-मस्तिष्क वैज्ञानिक डॉक्टर मकोतो शिचिंदा ने अपने शोध कार्यों के आधार पर महत्वपूर्ण जानकारी दी।

उन्होंने कहा की गर्भावस्था के सातवें माह में भी बच्चे का दायाँ मस्तिष्क सक्रिय होता हैं। दिमाग के इस हिस्से को चित्र मस्तिष्क (image brain) भी कहते हैं। यही image brain संवेदनाओं के प्रत्यक्षीकरण (sensory perception) का केंद्र होता हैं।

क्योंकि इस समय कोशिकाएँ बहुत अधिक संवेदनशील होती है इसलिए सूक्ष्मतम ऊर्जा की तरंगों को भी मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। इन नाज़ुक और संवेदनशील कोशिकाओं के कारण ही गर्भस्थ शिशु के पास extra sensory perception system होता हैं। शिशु इस समय इन कोशिकाओं का उपयोग बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिए करता हैं और ये सारी जानकारी उसके right brain को भेज दी जाती हैं।

इस समय भी right hemishphere इतना सामर्थ्य रखता हैं की इन ऊर्जा तरंगों (जिन्हे extra sensory impressions कहा जाता हैं) को वह मस्तिष्क के पटल पर रख दे, इसीलिए इस हिस्से को image brain कहा जाता हैं। भ्रूणावस्था से ले कर छह सात वर्ष की आयु तक बच्चे का right brain ही ज्यादा active होता हैं।

यहाँ आपको बता दें की राइट ब्रेन “creative brain” कहलाता हैं और लेफ्ट ब्रेन “logical brain” होता हैं। लेफ्ट ब्रेन को पूर्ण एक्टिव होने में छह सात वर्ष का समय लगता है यही कारण हैं की छोटे बच्चों के पास तर्क शक्ति नहीं होती सिर्फ भावनाएं होती हैं और उन्हें सिखाने के लिए creative तरीकों (खेल, ड्राइंग, रंग, कहानी कविताओं) को अधिक महत्वपूर्ण और कारगर माना जाता हैं।

       डॉ. शिचिंदे ने पाया की छोटे बच्चों को extra sensory perception ability की मदद से बहुत सी बातों के लिए trained किया जा सकता हैं और क्योकिं गर्भस्थ शिशु में भी ESP एक्टिव पायी गयी हैं इसलिए उन्होंने निष्कर्ष निकाला की जन्म के पहले भी न्यूरो तरंगों द्वारा राइट ब्रेन तक सूचनाएँ पहुंचती हैं।

बहुत से अन्य वैज्ञानिकों ने भी इस विषय में अपने शोध अध्ययनों से इस तरह के निष्कर्ष प्राप्त किये।

गर्भावस्था काल का बच्चे के व्यक्तित्व पर अध्ययन करने वाली सबसे प्रतिष्ठित संस्था Association for Prenatal and Perinatal Psychology and Health (APPPAH) और Journal of Prenatal and Perinatal Psychology and Health के संस्थापक Dr. Thomas Verny ने अपने अनेक शोध कार्यों से यह निष्कर्ष निकाला हैं की गर्भवती स्त्री के विचारों का उसके अजन्मे शिशु के साथ शारीरिक/भौतिक सम्बन्ध (physical connection) बनता हैं। उन्होंने कहा हैं की, “जो कुछ भी गर्भवती स्त्री सोचती/महसूस करती हैं वह सब न्यूरोहोर्मोन्स द्वारा शिशु तक जाता हैं, यह उतना ही निश्चित हैं जितना की गर्भवती द्वारा लिए गए निकोटिन या अल्कोहल का बच्चे तक जाना!

जिस तरह शिशु के बाकि अंग माँ के शरीर से प्रभावित होते हैं (माँ द्वारा किये जाने वाले भोजन का शिशु के शरीर में जाना और माँ के रक्त में उपस्थित किसी दवा/ड्रग का शिशु के रक्त में पहुँच जाना ऐसे ही मस्तिष्कीय तंतु भी शिशु तक अपनी बात पहुंचा रहे होते हैं।

 कुछ समय पहले अपने एक आर्टिकल (है आपमें guts… पर guts मतलब ?) में मैंने एक शोध का जिक्र किया था जिसके अनुसार हमारी आंत में पाए जाने वाले बैक्टीरिया हमारे मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के साथ सम्बन्ध रखते हैं और chemicals के आदान प्रदान से उन्हें निर्देश भी देते हैं ये बैक्टीरिया तनाव और डिप्रेशन से हमें बचाने का काम करते हैं और गर्भावस्था के समय माँ की आंत के ये बैक्टीरिया गर्भनाल द्वारा शिशु के शरीर में प्रवेश करते हैं ! और अपने साथ ले जाते हैं माँ का परिस्थितियों को देखने और deal करने का नजरिया और तरीका !

माँ की आंत के ये महत्वपूर्ण मास्टरमाइंड बैक्टीरिया शिशु के पेट में पहुँच कर उसके मस्तिष्क की वायरिंग को ठीक उसी तरह डिज़ाइन करने लगते हैं जैसी माँ की उस समय होती हैं। Psychology Spot नाम की एक प्रतिष्ठित रिसर्च मैगजीन में छपे शोध के अनुसार बच्चों की इंटेलिजेंस माँ से आती हैं न की पिता से और उन्होंने पाया की इसके लिए सिर्फ X क्रोमोजोम ही नहीं गर्भावस्था के “अन्य कारण” भी जिम्मेदार हैं !

ये अन्य कारण क्या होते हैं ?

  1. माँ जिन बातों को ध्यान से सुनती हैं और जो बातें /सूचनाएँ उसके विचारों का हिस्सा बन जाती हैं, वे बातें उसके मस्तिष्क की वायरिंग में सर्किट बनाती हैं ऐसे सर्किट्स को मस्तिष्क के न्यूरॉन, तंतुओं द्वारा आंत के बैक्टीरिया के साथ साझा करते हैं और यही बैक्टीरिया गर्भनाल द्वारा शिशु के शरीर में प्रवेश पाते हैं। ये gut बैक्टीरिया अब शिशु के न्यूरॉन्स को केमिकल कोडिंग द्वारा निर्देश प्रसारित करते हैं। इस तरह माँ की सोच शिशु की सोच को डिज़ाइन करती हैं.

दिमाग में ये सर्किट्स जो इस समय बन जाते हैं ये दरअसल एक प्रोग्रामिंग हैं जिसका उपयोग वह अभी तो नहीं करेगा पर भविष्य में जब उसके आगे वैसी परिस्थितियाँ आएँगी तब ये प्रोगम्मिंग एक्टिव हो जाएगी और यही “नजरिया” उस समय उसके निर्णयों को प्रभावित करेगा।

2. डॉक्टर शिचिंदे का शोध कहता हैं सूक्ष्म ऊर्जा तरंगे शिशु के राइट ब्रेन को सन्देश भेजती हैं (क्योकिं लेफ्ट का तार्किक मस्तिष्क तो अभी तैयार ही नहीं हुआ हैं) ये सूक्ष्म ऊर्जा तरंगे वही हैं जो न्यूरॉन्स शिशु के गट बैक्टीरिया से प्राप्त करते हैं।

ऐसे अनेक शोध हैं जिनमे पाया गया की जिन माओं ने गर्भावस्था में कोई नयी भाषा सीखी उनके बच्चों ने बाद में उस भाषा में दिए गए निर्देशों को बहुत जल्दी catch किया, माँ द्वारा सुने गए संगीत को जन्म के बाद उन्होंने पहचाना और अलग तरह की फैमिलियर सी प्रतिक्रिया दी.

विज्ञानं की दृष्टि से विकसित पाश्चात्य देश इन निष्कर्षों पर पहुँच रहे हैं और लगातार नए नए और एडवांस शोध इस विषय पर किये जा रहे हैं की गर्भस्थ शिशु क्या और कितना सीख सकता हैं तो अब हमारे देश में बुद्धिजीवी वर्ग को अभिमन्यु का चक्रव्यूह भेदन सीख लेना कपोल कल्पित नहीं लगना चाहिए।

और सबसे जरुरी बात यह अगर आप माँ बनने जा रही हैं तो खुश रहिए, अपने आप को हर वो जानकारी दीजिये जो आप चाहती हैं की आपका बच्चा जाने, और हाँ ऐसे विचारों की जुगाली हरगिज़ मत कीजिये जो आप नहीं चाहती की आपके बच्चे की “सोच” बने क्योकिं आपका अभिमन्यु सब सुन भी रहा हैं और सीख भी रहा हैं !