ADHD – वे बातें जो बाल मनोवैज्ञानिक चाहते हैं के आप जाने।
पिछले आर्टिकल में हमने ADHD के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की. आज बात करते हैं के ADHD रोजमर्रा की जिंदगी में कैसा नज़र आता हैं. पेरेंट्स, टीचर्स इस तरह के व्यवहार को कैसे देखते हैं और इस व्यवहार के पीछे का वह सच, जो मनोविज्ञान आपको बताना चाहता हैं।
ADHD यह नाम अपने आप में तीन प्रमुख समस्याओं को दर्शाता हैं –
1. एकाग्रता का अभाव (inattention)
2. अधीरता (impulsivity)
3. अति-सक्रियता (Hyperactivity)
आइये अब देखते हैं के आम जिंदगी में ये मानसिक समस्याएँ कैसी नज़र आती हैं.
1. एकाग्रता की कमी (inattention)
पेरेंट्स ऐसा कहते हैं –
- जब हम इसे कुछ कहते हैं तो ऐसा लगता हैं मानो यह एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देता हैं. हम कैसे मान लें के इसे कुछ समझ नहीं आता हैं… हमने इसे घंटों वीडियो गेम खेलते देखा हैं तब कैसे ध्यान एकाग्र रहता हैं…??
- इसको सारे क्रिकेटरों के नाम याद रहते हैं पर अभी दो मिनट पहले क्या पढ़ाया वो नहीं याद रहता! यह नाटक नहीं तो क्या हैं?
टीचर्स की शिकायतें कुछ ऐसी होंगी –
- ऐसा लगता हैं जैसे यह किसी और ही दुनियाँ में रहता हैं
- इसे जब भी किताब से कुछ पढ़ने को कहा जाए इसे कभी पता नहीं होता हम कौनसे पेज की कौनसी लाइन पर हैं
- अगर इसे बताया भी जाये की कहाँ से पढ़ना हैं तो भी इसे कुछ समझ ही नहीं आता
मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे –
- ‘एकाग्रता की कमी’ ADHD का सबसे प्रमुख लक्षण हैं। ऐसा नहीं हैं के ADHD वाले बच्चे कुछ समझ नहीं सकते — वे सबकुछ समझ सकते हैं! दिक्कत यह हैं के इनका दिमाग एक चीज/बात/निर्देश पर टिकता नहीं हैं, वह तुरंत किसी दूसरी चीज पर स्विच कर जाता हैं और अगर आस-पास कुछ ऐसा मौजूद न भी हो जो ध्यान भटका सके तो इनका दिमाग खुद अपनी कल्पना से कुछ क्रिएट कर देता हैं और ये अपने ख़यालों में गुम हो जाते हैं।
- वीडियो गेम को घंटों तक इसलिए खेल पाते हैं क्योंकि उसमें पल-पल में स्क्रीन पर सब बदल रहा होता हैं. फ्लैशी लाइट्स, म्यूजिक, और एक सेकंड से भी कम समय में बदलते दृश्य। हर सेकंड बदलाव चाहने वाला दिमाग वीडियो गेम में घंटों रमा रह सकता हैं. ऐसा आपको लग रहा होता हैं के वह “एकाग्र हो कर” खेल रहा हैं पर वास्तव में तो उसका दिमाग पल पल स्विच होने वाले सिस्टम पर ही कायम होता हैं.
- जिस कार्य को ये रूचि पूर्वक कर पाएँ और बार बार दोहरा पाएँ, उसे ये अच्छे से याद रख पाते हैं। स्पोर्ट एक्टिविटीज – जैसे क्रिकेट देखना. जिसमे टीवी स्क्रीन पर बहुत कुछ एक साथ चल रहा होता हैं कॉमेंट्री, बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग, दर्शकों का शोर यानि कुल मिला कर दिमाग को लगातार स्विच होते रहने का मौका मिलता रहता हैं इसलिए इनको एक जगह ध्यान एकाग्र करने का तनाव नहीं लेना पड़ता और जब तनाव नहीं होता तो रूचि बनी रहती हैं. जब रूचि बनी रहती हैं तो सीखना/याद रखना (learning) आसान हो जाता हैं। इसलिए आपके लाड़ले को क्रिकेटर्स के नाम तो याद रहते हैं पर मैथ्स की टेबल्स याद नहीं रहती। क्योंकि पढ़ाते समय आप शान्ति रखते हैं ताकि ध्यान न भटके और यही ध्यान एकाग्र रखने का दबाव बच्चों में तनाव उत्पन्न करता हैं. आपके इतने जतन करने के बावजूद भी ध्यान तो एकाग्र नहीं हो पाता बल्कि तनाव के कारण सीखने में रूचि भी समाप्त हो जाती हैं नतीजा – learning नहीं हो पाती।
2. अधीरता (impulsivity)
पेरेंट्स इसके बारे में कुछ इस तरह बात करते हैं –
- ये दस साल का हो गया हैं, और अभी भी इसे इतना समझ नहीं आता के जब मैं बोल रहीं हूँ तो बीच में बात काट कर बोलना शुरू न करें।ये अचानक से किसी भी बातचीत के बीच कब, क्या बोल दे कुछ कह नहीं सकते।
- मुझे इसको साइकिल चलाने देने में भी डर लगता हैं. हालाँकि इसे साइकिल चलाना आता हैं पर फिर भी यह बिना गिरे-पड़े या टकराये नहीं चलाता। कभी-कभी तो लगता हैं जानबूझ कर करता हैं ऐसा।
टीचर्स की शिकायतें कुछ ऐसी होंगी –
- इस बच्चे पर हर समय नज़र रखनी पड़ती हैं
- बाकि बच्चे इसे बहुत चिढ़ाते हैं क्योंकि उन्हें पता हैं के इसे चिढ़ा देना बहुत आसान हैं
- ये अपनी बारी का इंतज़ार नहीं कर सकता, सवाल पूछते ही बिना हाथ खड़ा किये सीधा जवाब दे देता हैं। अक्सर तो सवाल भी पूरा नहीं सुनता। जब आता ही नहीं हैं तब भी पता नहीं क्या जल्दी रहती हैं इसे जवाब देने की!
मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे –
- ADHD के तीन प्रमुख लक्षणों में से एक हैं “अधीरता” यानि impulsivity.
यानि बिना सोचे समझे बस-
– कुछ भी कर जाना!
– कुछ भी बोल जाना!
- ऐसा नहीं हैं के ये बच्चे ऐसा व्यवहार जानबूझ कर रहें हों। और ऐसा भी नहीं हैं की इनको पता नहीं हैं के क्या सही हैं और क्या गलत। ऐसा भी नहीं हैं की इनको क्लासरूम या playground के सामान्य अनुशासन की जानकारी नहीं होती। पता इन्हें सब होता हैं, याद भी इन्हें सब होता हैं पर इनका दिमाग उस जानकारी का इस्तेमाल करने की प्रतीक्षा नहीं करता और जैसे कुछ होता हैं ये तुरंत प्रतिक्रिया दे बैठते हैं – “क्या कर दिया” यह सोचते बाद में है। और तब तक देर हो चुकी होती हैं क्योंकि ये फिर से वही “गलती कर चुके होते हैं” और फिर से “मुश्किल में आ चुके होते हैं”
- माता पिता और टीचर्स अक्सर हैरान होते रहते हैं के ये इतना भी बेवकूफ तो नहीं हैं जो ऐसी गलतियाँ करें! इतनी मूर्खतापूर्ण गलतियाँ या लापरवाहियाँ तो कोई मंदबुद्धि करता हैं और इसका दिमाग इतना भी कमजोर नहीं हैं !
- प्लेग्राऊंड में अगर बच्चे को कोई धक्का लगे तो वह पहले यह देखता हैं के धक्का जानबूझ कर लगा या अनजाने में, जिस से धक्का लगा वह मित्र हैं या कोई अनजान और अगर उसे वापस धक्का देना भी हो तब भी यह जरूर देख लेता हैं के कोई टीचर देख तो नहीं रही पर ADHD वाला बच्चा इस में से कुछ भी नहीं सोचेगा वह धक्का लगते ही तुरंत वापस धक्का दे देगा और कितना तेज धक्का देना हैं इसका भी कोई अंदाज़ा नहीं लगाएगा वह यह कार्य अपनी पूरी शक्ति से करेगा। नतीजा यह के उसे “बखेड़ा खड़ा करने वाला बच्चा” का लेबल मिल जाता हैं। “गुस्सैल” “बत्तमीज” जैसे लेबल इन्हें हर रोज मिलते रहते हैं।
- दरअसल में न तो ये गुस्सैल हैं और न बत्तमीज। इनके और आपके दिमाग की फंक्शनिंग में एक छोटा सा अंतर हैं. कभी आपका हाथ किसी तेज गर्म वस्तु को छू जाये तो क्या होता हैं ? आपका हाथ तुरंत वहाँ से हट जाता हैं. हैं न ? यहाँ मैंने लिखा के “हाथ गर्म वस्तु को छू जाये तो क्या होता हैं?” यह नहीं लिखा के “हाथ गर्म वस्तु को छू जाये तो आप क्या करते हैं?” क्योंकि हाथ का तुरंत वहाँ से हट जाना दरअसल में एक रेफ्लेक्सिव एक्शन हैं यानि के “अपने आप होने वाली क्रिया।” “वस्तु गर्म थी… हाथ जल गया..” यह बात भी आप “बाद में” सोचते हैं और हाथ को हटाने का काम पहले ही “कर चुके” होते हैं। यानि आपने भी “करने के बाद सोचा” के क्या कर दिया.
- अब हालाँकि इस तरह का व्यवहार हमारा दिमाग सिर्फ ऐसी आपात स्थितियों में ही करता हैं पर ADHD की स्थिति में दिमाग अधिकांश परिस्थितियों में इसी रेफ्लेक्सिव एक्शन को अपनाता हैं। इसमें कुछ भी “जानबूझ” करने जैसा नहीं हैं बल्कि सच तो यह हैं के दिमाग समय इतना समय लेता ही नहीं के वह क्लासरूम के या प्लेग्राउंड के या आपके द्वारा समझाए गए नियमों को खंगाले और फिर प्रतिक्रिया दे। प्रतिक्रिया तुरंत हो जाती हैं ठीक वैसे ही जैसे गर्म वस्तु को छूते ही बिना आपसे सलाह मश्वरा किये आपका हाथ तुरंत वहाँ से हट जाता हैं।
- हालाँकि समय और अनुभव के साथ ये बच्चे भी सीखते हैं पर इनके सीखने की गति सामान्य बच्चों से काफी कम होती हैं।
3. अति सक्रियता (hyperactivity)
पेरेंट्स कुछ इस तरह बताएँगे –
- ये पैदा होने से पहले ही बहुत ज्यादा एक्टिव था।
- दो साल का था तब भी ऐसा था जैसे बिना ढक्कन के चलता हुआ मिक्सर!! पल में इधर से उधर बवंडर की तरह।
- हम किसी के घर जाएँ तो इसको उनके घर की हर एक चीज के हाथ लगाना होता हैं।
टीचर्स कुछ इस तरह कहेंगे –
- ये अपनी सीट पर टिक कर बैठ ही नहीं सकता।
- इसको हर वक़्त पास वाले बच्चे से बात करनी होती हैं चाहे इसकी सीट कितनी भी बार बदल दो. इससे कोई अंतर नहीं पड़ता के इसके पास कौन बैठा हैं… इसे बस बोलना हैं।
- इसका हर वक़्त लगातार पेंसिल से ठक-ठक – ठक-ठक करते रहना बहुत खिजा देता हैं।
मनोवैज्ञानिक आपको बताना चाहेंगे –
- हाइपर एक्टिविटी ADHD का सबसे प्रमुख लक्षण हैं। इस समस्या से ग्रस्त बच्चों की माएँ अक्सर यह कहते हुए मिलती हैं के यह बच्चा गर्भावस्था के दौरान भी अत्यधिक एक्टिव था। यह अत्यधिक एक्टिव होना वास्तव में बालसुलभ चंचलता नहीं बल्कि कोई समस्या हैं इसका पता अक्सर तभी चल पाता हैं जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता हैं। चाहे वह प्ले स्कूल ही जाये पर वहां भी कुछ हद तक आत्म नियंत्रण की दरकार होती ही हैं और तब ये बच्चे सामान्य आत्म नियंत्रण भी प्रदर्शित नहीं कर पाते। ऐसा लगता हैं ये किसी हवाई घोड़े पर सवार हैं !
- ये स्टोरी टाइम जैसी एक्टिविटीज के दौरान पांच-दस मिनट भी टिक नहीं पाते। ड्राइंग कलरिंग जैसे छोटे छोटे टास्क करने भी इनको भारी लगते हैं. जब दस दस मिनट की एक्टिविटीज में ये अपने “एक्टिव रहने को” नियंत्रित नहीं कर पाते और अगर बाध्य किया जाये तो ये पेंसिल या किसी भी वस्तु से लगातार कुछ बजाते रहने जैसे कार्य में लग जाते हैं यानि के इनके पाँव नहीं चलेंगे तो हाथ चलते रहेंगे और हाथ भी नहीं चलने देंगे तो ये पास वाले से बातें करते रहेंगे और पास में कोई नहीं होगा तो मुँह से हम्म्म हम्म्म जैसी कुछ भी आवाजे निकालते रहेंगे — बिना रुके लगातार !
- प्री स्कूल के थोड़े से समय के औपचारिक वातावरण (फॉर्मल सेटिंग) में ही यह समझ आ जाता हैं के जिसे आप बच्चे का “चंचल” होना समझ रहें हैं वह वास्तव में एक “बेचैनी” हैं!
- यह बैचनी किसी भावनात्मक उलझन या परिस्थिति के कारण नहीं हैं बल्कि यह नर्वस सिस्टम की समस्या हैं। ब्रेन का वह भाग जिसे स्थिरता कायम रखनी हैं वह अपना कार्य ठीक से नहीं कर पा रहा इसलिए इन बच्चों को स्थिर रहने में दिक्कत होती हैं।
ADHD वाले दिमाग की इस अलग सी सेटिंग को आप reset तो नहीं कर सकते पर स्थितियों को काफी हद तक संभाला जरूर जा सकता हैं। बिहेवियर थेरेपी, दवाओं, घर और स्कूल में उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था और बतौर माता पिता आपके प्रेम और धैर्य से ये सभी समस्याएँ काफी हद तक सुलझायी जा सकती हैं। कैसे – इस बारे में अगले आर्टिकल्स में बात करेंगे।